२२.) मृत्यु से डर क्यों लगता है?

मृत्यु से वो डरते हैं जिन्होनें जीवन पूर्णता से नहीं जिया, जो आवश्यक है वो नहीं किया।

मृत्यु वो अवस्था है जहां स्मृति में निरंतरता टूट जाती है। जैसे स्वप्नजीव यह नहीं जान सकता है कि जागृति में क्या था। यादाश्त चली जाना मृत्यु है, जो अनुपयोगी है मृत्यु उसका नाश है। जैसे सांप अपनी पुरानी त्वचा छोड़ देता है, या जैसे हम कपड़े बदलते हैं।

जो परिवर्तनशील है उसको स्थायी करने का प्रयत्न, बड़ा अज्ञान दर्शाता है। वास्तव में मेरी मृत्यु नहीं होती है, केवल जागृत अवस्था मृत्य अवस्था में बदल जाती है।

मृत्यु को जान लो, बाकी कुछ नहीं जानना है। विश्वचित्त में एक ही बुराई है और वो है निचली परतों में जन्म लेना। जन्म अज्ञान या मृत्यु के डर की वजह से ही होता है।

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