1. दृश्य हमेशा सीधा होता है।
2. समय हमेशा एक दिशा में चलता है।
3. प्रकाश का सोत्र नहीं होता।
4. स्थान अनंत है।
5. ध्वनि विचार है।
6. उर्जा का सोत्र नहीं होता।
7. मशीनें काम नहीं करती।
8. कारण-प्रभाव का आभाव।
9. स्वयं का चेहरा नहीं होता।
10. प्राथमिक दृष्टिकोण है।
11. रंग भाव प्रबल तन्मात्राएं हैं।
12. स्वाद गंध ताप मंद तन्मात्राएं हैं।
13. स्थान परिवर्तनशील हैं।
14. व्यक्ति परिवर्तनशील हैं।
15. चित्त के सभी नियम हैं।
16. अनुभवकर्ता है।
17. अनुभवक्रिया है।
1. दृश्य हमेशा सीधा होता है।
चित्त में कोई प्रक्रिया है जो दृश्य को सीधा कर देती है। सूक्ष्म लोक में यह प्रक्रिया कम हो जाती है, वहां कभी कभी यह नियम टूटता है। यदि स्वप्न में यह हो जाये तो इसका मतलब है कि आप स्वप्न लोक छोड़ चुके हैं और सूक्ष्म लोक में प्रवेश कर चुके हैं।
चित्त में कोई प्रक्रिया है जो दृश्य को सीधा कर देती है। सूक्ष्म लोक में यह प्रक्रिया कम हो जाती है, वहां कभी कभी यह नियम टूटता है। यदि स्वप्न में यह हो जाये तो इसका मतलब है कि आप स्वप्न लोक छोड़ चुके हैं और सूक्ष्म लोक में प्रवेश कर चुके हैं।
2. समय हमेशा एक दिशा में चलता है।
इससे भी यही पता चलता है कि समय चित्त निर्मित है।
इससे भी यही पता चलता है कि समय चित्त निर्मित है।
3. प्रकाश का सोत्र नहीं होता।
प्रकाश का स्रोत नहीं है फिर भी चीजों का दिख जाना यह बताता है कि प्रकाश चित्त निर्मित है। प्रकाश केवल एक तरह का नाद है। स्वप्न स्वप्रकाषित है, यह किसका प्रकाश है? यह आत्म प्रकाश है जिसमें हर अनुभव प्रकाशित होता है। जागृत अवस्था में होने वाले अनुभव भी सूर्य से प्रकाशित नहीं हैं, वह भी स्वप्रकाषित हैं।
4. स्थान अनंत है।
आप जितना चाहे स्थान बना सकते हैं स्वप्न में, उसका कोई अन्त नहीं है। इससे यह सिद्ध होता है कि स्थान भी चित्त निर्मित है। जैसे ही स्वप्न में स्थान या समय का अनुभव नहीं रहे, तो स्वप्न अवस्था नहीं रही है, आप तब शून्यता में हैं। चित्त का कार्य कभी बंद नहीं होता है बस अवस्थायें बदलती रहती हैं।
5. ध्वनि विचार है।
जो भी लोग बोलते हैं स्वप्न में, चेतना जागृत है तो यह पता चलता है कि वह मेरे ही विचार हैं।
केवल विश्वचित्त है, और उसमें नाद है यहां पर अलग कुछ भी नहीं है, सभी कुछ चित्त निर्मित है।
पदार्थ में नाद को ध्वनि कहते हैं, पर स्मृति में जो नाद है वो विचार के रुप में है।
6. उर्जा का सोत्र नहीं होता।
कोई नहीं जानता है कि वहां ऊर्जा कहां से आती है। ऊर्जा या परिवर्तन भी भ्रम है। ऊर्जा का स्रोत नहीं मिलना यही दर्शाता है कि परिवर्तन नहीं हो रहा है, परिवर्तन भी भ्रम है। जागृत अवस्था में भी ऊर्जा का स्रोत क्या है यह कोई नहीं जानता है। यह केवल सिद्धांतिक है, मनगढ़ंत बातें हैं, सामान्यकरण करना है। चित्त केवल एक भ्रम पैदा करता है की परिवर्तन हो रहा है, यह भी मनगढ़ंत है, चित्त निर्मित है। कुछ कार्य नहीं हो रहा है यहां पर।
7. मशीनें काम नहीं करती।
वहां उपकरण कभी काम करते हैं कभी नहीं, क्योंकि स्वप्न के नियम भौतिक नियमों से कुछ भिन्न हैं।
8. कारण-प्रभाव का आभाव।
यदि आपको स्वप्न लोक में कारण प्रभाव दिखने लगे तो इसका मतलब है कि स्वप्न अवस्था छूट गई है और सूक्ष्म लोक आ गया है।
9. स्वयं का चेहरा नहीं होता।
ऐसा इसलिये है क्योंकि वहां दर्पण के भौतिक नियम काम नहीं करते हैं।
10. प्राथमिक दृष्टिकोण है।
एक ही दृष्टिकोण रहता है, मैं स्वयं को किसी और के दृष्टिकोण से नहीं देख सकता हूँ। मैं अपने दृष्टिकोण से सबको देखता हूँ। मैं स्थायी रहता हूँ, बाकी सब दृश्य बदलते रहते हैं। ठीक ऐसा ही जागृत अवस्था में भी होता है, चलने का भी दृश्य ही दिखाई देता है। मैं विश्वस्मृति में किसी भी दृष्टिकोण से देख सकता हूँ, सभी मनुष्यों में यह सम्भावना है, क्योंकि वहां ना स्थान है ना समय है। लेकिन यह सिद्धियां मैनें त्याग दी हैं, अज्ञान का परदा पढ़ा हुआ है।
11. रंग भाव प्रबल तन्मात्राएं हैं।
प्रकाश, ध्वनि, भावनायें आदि प्रबल रहती हैं। स्थूल तन्मात्रायें घटती जायेंगी और सूक्ष्म तन्मात्रायें प्रबल होती जाती हैं। विकासक्रम में भी ऐसा ही होता है।
12. स्वाद गंध ताप मंद तन्मात्राएं हैं।
स्वाद, काम वासना, स्पर्श आदि इच्छायें स्वप्न में पूरी नहीं होती हैं, क्योंकि इनकी पूर्ति के लिए स्थूल इन्द्रियां चाहियें।
13. स्थान परिवर्तनशील हैं।
तेज बहाव है।
14. व्यक्ति परिवर्तनशील हैं।
भाव, सम्बंध, व्यक्ति आदि बहुत जल्दी बदल जाते हैं। स्वप्न में सब कुछ मैं ही हूँ,
मुझे मेरे ही चेहरे बदलते हुऐ दिखते हैं।
15. चित्त के सभी नियम हैं।
दृष्टि सृष्टि, जो दिख रहा है वही बन रहा है। जो चाहिये वो बनाया जा सकता है स्वप्न में, केवल संकल्प करने से प्रकट हो जाता है।
16. अनुभवकर्ता है।
जब हम जागते हैं स्वप्न से तो सब कुछ बदल गया होता है, फिर भी हम कहते हैं कि यह मेरा स्वप्न है। केवल अनुभवकर्ता नहीं बदलता, वह अटल सत्य है, इसलिये मेरा स्वप्न है यह कहना भी गलत नहीं है। चित्त की बदलती हुई अवस्थाओं में जो स्थायी है, वो मैं ही हूँ, मैं ही अनुभवकर्ता हूँ। यह सब मेरा ही रुप है जो नये नये जन्म ले रहे हैं। मैं हर रात एक नया जन्म लेता हूँ जिसको मैं स्वप्न कहता हूँ। एक ही स्वप्न में भी कई बार भिन्न रुप आ जाते हैं। मूल रुप से ठीक ऐसा ही जागृत अवस्था में भी हो रहा है।
17. अनुभवक्रिया है।
दोनों अवस्थाओं में एक ही अनुभवक्रिया दिखाई देती है।
सभी नियम प्रमाणिक हैं, उनको प्रयोगों से देखा जा सकता है|
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