संसार, संसारी लोग, संसारिक कार्य भी अध्यात्मिक हैं, संसार भी आत्मन है, मैं ही हूँ। सारे जीव भी ब्रह्मं ही हैं तो इसमें क्या अध्यात्मिक नहीं है? तो संसार विघ्न कैसे हो सकता है जब वो भी अध्यात्म ही है। करना बस इतना ही है कि संसारिक कार्य करते हुए भी अपनी चेतना बनाये रखनी चाहिए।
संसार को दुख का कारण नहीं समझें, बल्कि एक शिक्षा की तरह से देखें। अपना जरूरी दायित्व पूरा करने के बाद का समय व्यर्थ न करें, उसमें पूरी तरह से साधना पर ध्यान दें। दिखावा कम करें, संग्रह कम करें, आदतें सुधार लें, जीवन सरल बना लें तो अध्यात्म के लिए बहुत समय मिल जायेगा और संतुलन अपने आप बन जायेगा।
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