मनुष्य ने सपने को ही सत्य मान लिया है और बाहरी वस्तुओं पर बहुत निर्भर हो गया है। कोई भी अच्छा अनुभव हो, या इच्छा पूर्ति हो, उसका असर थोड़ी देर ही रहता है, फिर कुछ ना कुछ हो जाता है। हम यहां सुख लेने नहीं आये हैं, अनुभव में सुख नहीं मिलता है। मैं स्वयं ही आनंद हूँ, लेकिन उसको वहां ढूंढ रहा हूँ जहां वो नहीं है। यहां हम सीखने आये हैं, कुछ भोगने नहीं आये हैं।
जिसके लिए मनुष्य जन्म लिया है, वही छोड़कर हम बाकी सभी कामों में व्यस्त रहते हैं। यही माया का प्रभाव है जो सब कुछ उलटा कर देती है।
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