अति लघु उत्तरीय प्रश्न

१.) आत्मा और परमात्मा को ज्ञानमार्ग पर क्या कहा गया है?
ज्ञान मार्ग पर आत्मा परमात्मा नहीं है। ज्ञान मार्ग पर आत्मन और ब्रह्मं कहते हैं, और ये दोनों एक ही हैं।


२.) ज्ञानमार्ग में प्रगति कैसे होती है?
ज्ञानमार्ग पर आध्यात्मिक प्रगति का अर्थ होता है कि ज्ञान में अवस्थित होना।


३.) क्या वेद पढ़ने से ज्ञान होता है?
ज्ञान के लिए वेद पड़ना आवश्यक नहीं है। गुरु कृपा से ज्ञान लेने के बाद वेद पढ़िये सब कुछ स्पष्ट समझ में आने लगेगा।


४.) स्वसमानता का नियम क्या है? 
जो उपर की परतों में है, वही नीचे की परतों में भी है, यही स्वसमानता का नियम है।


५.) क्या सभी जीवों की स्मृति अलग अलग होती है या उसमें कोई सम्बन्ध है?  
स्मृति एक ही है, सारी सीमायें काल्पनिक हैं। 


६.) शिष्य के क्या क्या गुण है ?
जो शिष्य बनना चाहता है उसके लिये विनम्रता बहुत महत्वपूर्ण है, कि मैं कुछ नहीं जानता हूँ, और मैं यह ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ।


७.) ज्ञान मार्ग पर कितने चरण है? 
ज्ञान मार्ग पर दो ही चरण हैं। पहला की यह सब या चित्त मैं नहीं हूँ; और दूसरा की यह सब या चित्त भी मैं ही हूँ। पहला विरक्ति; दूसरी एकत्व। पहला आत्मज्ञान; दूसरा ब्रह्मज्ञान।


९.) ज्ञानमार्ग क्या है ? इसका लक्ष्य क्या है ?
ज्ञान मार्ग का लक्ष्य अज्ञान का नाश है, मुक्त तो आप पहले से ही हैं। यह अज्ञान भी दूर हो जाता है कि मैं बंधन में हूँ।


१०.) ज्ञानमार्ग के अलावा और कौनसा आध्यात्मिक मार्ग सीधा मार्ग है?
ज्ञान मार्ग के बाद अष्टांग योग ही सबसे सीधा मार्ग है।  


११.) ज्ञानी के लिए भी क्या कोई नियम है? 
ज्ञानी ही रचनाकार है, वह अपने नियम स्वयं बना सकता है। नियम अज्ञानी के लिए हैं, ज्ञानी के लिए कोई नियम नहीं है।


१२.) सारे अनुभव कहाँ पर संचित हो रहे है?   
सारे अनुभव स्मृति में पड़े हैं तन्मात्रा के रूप में, जो दुबारा चलाये जा सकते हैं, जैसे CD में मूवी पहले से रिकॉर्डड है। इसलिये सभी कुछ यहीं है और अभी है।


१३ .) विचार और कल्पना में क्या सम्बन्ध है? 
विचार एक विशेष प्रकार की गति है जो मन में चलती है। विचारों को रचनात्मक रुप से जोड़ना कल्पना है, कल्प यानि बदलना। 


 १४.) क्या अनुभवकर्ता का भी अनुभव संभव है?
अनुभवकर्ता को अनुभव में ढूंढना मूर्खता है। अनुभव है लेकिन जिसका अनुभव होता है, वो कहीं नहीं है। यह बात ध्यान में रखनी पड़ती है अनुभव के बारे में। इससे अहम ब्रह्मस्मी सिद्ध हो जाता है।

 १५ .) अस्तित्व क्या है?
अनुभव की श्रृंखला अस्तित्व है। अस्ति का अर्थ है होना त्व का अर्थ है ऐसा।

१६.) आध्यात्मिक मार्ग की शुरुआत कैसे होती है?
आध्यात्मिक मार्ग की शुरुआत होने के लिए प्रश्न आवश्यक है। जीवन में दुखः या जिज्ञासा ही प्रश्नों का कारण है। प्रश्न ना होने पर रूचि नहीं होती और बिना रूचि के ज्ञान नहीं होता।

१७.) किसी उत्तर का मुल्यांकन कैसे करे?
जब भी किसी प्रश्न का उत्तर मिले, उसका मूल्यांकन स्वयं के अनुभवों के आधार पर करना चाहिये।

१९.) अद्वैत में सत्य का मानदंड क्या है?
अद्वैत में सत्य का मानदंड अपरिवर्तनीय है, जो कभी बदलता नहीं है। 
 
२०.) अनुभवों के वर्गीकरण का क्या उद्देश्य है?
अनुभवों का वर्गीकरण जीवनोपयोगी है। उत्तरजीविता के लिए आवश्यक है। 

.) क्या सभी विचारों पर कर्म आवश्यक है?

जब विचार उठ जायें तब बुद्धि का उपयोग करना है कि यह करना चाहिए या नहीं, कि यह प्रगति की ओर ले जा रहा है या दुर्गति की ओर। दिन में 99% विचारों पर कर्म करने की आवश्यकता नहीं होती है। 

२२.) क्या ज्ञानमार्ग पर बुद्धि का तेज़ होना आवश्यक है?

बुद्धि का उपयोग भी अज्ञान या अशुद्धि मिटाने के लिए किया जाता है, इसके अतिरिक्त बुद्धि का कोई उपयोग नहीं है। बुद्धि अज्ञेयता की ओर ले जाती है। हमने अज्ञान को ज्ञान मानकर स्मृति में जमा कर रखा है।


२३.) ज्ञानमार्ग पर चलते हुए क्या कोई और साधना की जा सकती है?
जब तक कार्यक्रम में हैं, तब तक अन्य कोई और साधना करने की आवश्यकता नहीं है। कोई भी साधना गुरु के निर्देशन में ही करनी चाहिये। बिना गुरु के मार्ग दर्शन में कोई भी साधना करना निरर्थक है।  

२४) ज्ञानमार्ग पर प्रगति कैसे होती है?
ज्ञान मार्ग पर घटना, खाली होना प्रगति है। ज्ञान को ज्ञान से ही काट दिया जाता है। तर्क का उपयोग तर्क से उपर उठने के लिए किया जाता है। 

२५.) अस्तित्व, अनुभव, अनुभवक्रिया, अनुभवकर्ता, अद्वैत में क्या संबन्ध है?
अस्तित्व = अनुभव = अनुभवक्रिया = अनुभवकर्ता = अद्वैत 
अस्तित्व, अनुभव,  अनुभवक्रिया, सब एक ही है। सिर्फ समझने के लिए इनको विभाजित किया गया है। 

२६.) अनुभवकर्ता का क्या प्रमाण है?
सभी चीजों का नकारने के बाद जो रहता है, वही अनुभवकर्ता है। अनुभवकर्ता का अनुभव संभव नहीं है। अनुभवकर्ता स्वतः प्रमाणित है, स्वयंसिद्ध है।

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