ज्ञान मार्ग पर आत्मा परमात्मा नहीं है। ज्ञान मार्ग पर आत्मन और ब्रह्मं कहते हैं, और ये दोनों एक ही हैं।
ज्ञानमार्ग पर आध्यात्मिक प्रगति का अर्थ होता है कि ज्ञान में अवस्थित होना।
ज्ञान के लिए वेद पड़ना आवश्यक नहीं है। गुरु कृपा से ज्ञान लेने के बाद वेद पढ़िये सब कुछ स्पष्ट समझ में आने लगेगा।
४.) स्वसमानता का नियम क्या है?
जो उपर की परतों में है, वही नीचे की परतों में भी है, यही स्वसमानता का नियम है।
स्मृति एक ही है, सारी सीमायें काल्पनिक हैं।
६.) शिष्य के क्या क्या गुण है ?
जो शिष्य बनना चाहता है उसके लिये विनम्रता बहुत महत्वपूर्ण है, कि मैं कुछ नहीं जानता हूँ, और मैं यह ज्ञान प्राप्त करना चाहता हूँ।
९.) ज्ञानमार्ग क्या है ? इसका लक्ष्य क्या है ?
ज्ञान मार्ग का लक्ष्य अज्ञान का नाश है, मुक्त तो आप पहले से ही हैं। यह अज्ञान भी दूर हो जाता है कि मैं बंधन में हूँ।
११.) ज्ञानी के लिए भी क्या कोई नियम है?
ज्ञानी ही रचनाकार है, वह अपने नियम स्वयं बना सकता है। नियम अज्ञानी के लिए हैं, ज्ञानी के लिए कोई नियम नहीं है।
१३ .) विचार और कल्पना में क्या सम्बन्ध है?
विचार एक विशेष प्रकार की गति है जो मन में चलती है। विचारों को रचनात्मक रुप से जोड़ना कल्पना है, कल्प यानि बदलना।
अनुभव की श्रृंखला अस्तित्व है। अस्ति का अर्थ है होना त्व का अर्थ है ऐसा।
आध्यात्मिक मार्ग की शुरुआत होने के लिए प्रश्न आवश्यक है। जीवन में दुखः या जिज्ञासा ही प्रश्नों का कारण है। प्रश्न ना होने पर रूचि नहीं होती और बिना रूचि के ज्ञान नहीं होता।
अद्वैत में सत्य का मानदंड अपरिवर्तनीय है, जो कभी बदलता नहीं है।
२०.) अनुभवों के वर्गीकरण का क्या उद्देश्य है?
अनुभवों का वर्गीकरण जीवनोपयोगी है। उत्तरजीविता के लिए आवश्यक है।
जब विचार उठ जायें तब बुद्धि का उपयोग करना है कि यह करना चाहिए या नहीं, कि यह प्रगति की ओर ले जा रहा है या दुर्गति की ओर। दिन में 99% विचारों पर कर्म करने की आवश्यकता नहीं होती है।
२२.) क्या ज्ञानमार्ग पर बुद्धि का तेज़ होना आवश्यक है?
बुद्धि का उपयोग भी अज्ञान या अशुद्धि मिटाने के लिए किया जाता है, इसके अतिरिक्त बुद्धि का कोई उपयोग नहीं है। बुद्धि अज्ञेयता की ओर ले जाती है। हमने अज्ञान को ज्ञान मानकर स्मृति में जमा कर रखा है।
सभी चीजों का नकारने के बाद जो रहता है, वही अनुभवकर्ता है। अनुभवकर्ता का अनुभव संभव नहीं है। अनुभवकर्ता स्वतः प्रमाणित है, स्वयंसिद्ध है।
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