स्मृति पराभौतिक परामानसिक रचनायें है, पदार्थ नहीं है, प्रतीत होती है, सम्भावना मात्र है, वहां कुछ है नहीं। जैसे पानी में लहरें प्रतीत होती हैं, वास्तव में हैं नहीं। नाद का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है, वह मिथ्या है।
स्मृति में कुछ सही गलत नहीं है।अनुभव से स्मृति बनती नहीं है पर यह कह सकते हैं कि अनुभव स्मृति में छाप छोड़ते हैं। हमें जो भी अनुभव होते हैं वह स्मृति के ही होते हैं| वह स्मृति में पहले से है। और जो भी अनुभव हो रहा है वो वापस स्मृति में अंकित होता है, इसलिये केवल स्मृति ही है। अभी भी स्मृति का ही कुछ भाग हमारे अनुभव में है।
इसको पूरी तरह से जानना असम्भव है, यह एक परिकल्पना है जिज्ञासा को शांत करने के लिए। क्योंकि माया भी अज्ञेय है वो भी नहीं जानी जा सकती है। ज्ञानी को खड़े होने के लिए कुछ नहीं मिलेगा, केवल अज्ञेयता ही हर प्रश्न का उत्तर है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें