निधिध्यासन का अर्थ है कि जो ज्ञान हुआ है वो हो जाना है, उसको अपनी जीवन शैली बना लेना। साक्षी भाव यानी अनुभवकर्ता हो जाना है। भाव में भव है, यानी वो हो जाना। ज्ञान मार्ग पर चलना ही श्रवण मनन निधिध्यासन है। व्यवहार, व्यक्तित्व में ज्ञान का प्रकट होना निधिध्यासन है।
नित + धी + आसन, अर्थात् निरंतर बुद्धि (प्रज्ञा, चेतना) में बैठना ही निधिध्यासन है। श्रवण के बाद मनन में गुरु की सहायता लगती है। कभी कभी ज्ञान होने के बाद, आपकी अवस्था ज्ञान की हो जाती है, जिसको निधिध्यासन भी कह सकते हैं।
श्रवण मनन निधिध्यासन से ज्ञान आता है, ज्ञान से चेतना आती है। कुछ करने से नहीं आती है चेतना, जब आत्मज्ञान हो जाता है तो चेतना अपने आप प्रकट हो जाती है। चेतना का अर्थ है कि मैं चित्त नहीं हूँ, मैं अनुभवकर्ता हूँ, इस अवस्था में रहना चेतना है। अनुभवकर्ता क्या है, इसका किताबी ज्ञान चेतना नहीं है।
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