शून्यता का अर्थ है कि जो भी अस्तित्व में है उसका कोई तत्व नहीं है। शून्यता का अर्थ यह नहीं है कि कुछ है ही नहीं। शून्यता का अर्थ सर्वथा अभाव नहीं है। यदि तत्व नहीं मिलता है तो उसे अज्ञेय कह देते हैं। अस्तित्व का तत्व शून्यता है, केवल सम्भावना मात्र है, इसलिये अनंत है। जांचने पर ब्रह्मं या आत्मन का कोई आधार नहीं मिलता है, कोई भी तत्व नहीं मिलता है इसलिये उसको शून्यता कहते हैं। शून्यता यानि जिसका ना कोई आधार हो, ना कुछ तत्व, प्रक्रिया आदि दिखे और ना ही कोई ज्ञान हो सकता है|
ये मान्यता है कि जो प्रतीत होता है उसकी रचना की गई है, उसका कुछ कारण है। यदि यह मान्यता हटा दें तो यह प्रश्न अर्थहीन हो जाता है कि शून्यता से रचना कैसे सम्भव है। सभी अनुभव शून्यता से ही आ रहे हैं और फिर उसमें ही विलीन हो जाते हैं। जब कुछ प्रकट है तब भी शून्यता है, और विलय में भी शून्यता ही है। शून्यता में गति नहीं है केवल प्रतीत होती है।शून्यता से अज्ञान आता है और फिर शून्यता रह जाती है। अस्तित्व का स्वभाव ज्ञान नहीं है, कुछ होना नहीं है, अस्तित्व का तत्व नहीं मिलता है, केवल शून्यता है। जब तक अज्ञान है तभी तक लीला है, इसलिये यह कहा गया है कि विश्वचित्त में भी अज्ञान है।
शून्यता में जानने का कुछ नहीं है, शून्यता हुआ जा सकता है, जो मैं पहले से ही हूँ। होना आवश्यक है जानना नहीं। पहले अज्ञान है, फिर आता है ज्ञान, फिर ज्ञान का भी कोई प्रयोजन नहीं रहता, तो जो बच जाता है वो आपका घर है।
किसी को भी वस्तुओं का अनुभव नहीं होता है, सभी अनुभव चिदाकाश या शून्यता के परदे पर एक प्रतिति मात्र हैं, भ्रम है। यही सत्य है, बाकी सब अनुमान लगाया गया है। सभी नाम रुप मिथ्या हैं, कुछ है नहीं। जैसे स्वप्न समाप्त होने के बाद कुछ बचता नहीं है, केवल शून्यता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें