जो भी हुआ है उसपर चेतना का प्रकाश डालें। कुछ गलत कर्म हो भी गया है, तो चेतना आने के बाद उसे पूरी चेतना में देख लेने से ऐसा होता है जैसे की वो भी चेतना में ही हुआ था, क्योंकि अस्तित्व में समयहीनता है, और सभी अनुभव स्मृति हैं। दोनों कृत्य स्मृति में अंकित हो जाते हैं और उनमें कोई भेद नहीं रहता है। फिर उसके भी संस्कार नहीं बनेंगे।
कोई भी घटना हो या सम्बंध है, यदि वह पूरी तरह से सम्पूर्ण चेतना के प्रकाश में है, तो उनका कुछ प्रभाव नहीं पड़ता है, वो एक तरह का तप है, परीक्षा है। यदि चेतना का प्रकाश जागृत है तो अन्य कुछ करने की आवश्यकता नहीं है।
पुरानी घटनाओं को चेतना के प्रकाश में देखने से, उसके संस्कार से बाद में धीरे धीरे चेतना बढ़ने लगेगी और उसका प्रभाव बाद में होने वाले अनुभवों पर भी पड़ेगा।
चेतना यह बताती है कि यहां कुछ ठीक नहीं है। चेतना साधारण सी बात है। यह देखना कि सत्य क्या है, उसमें संसारिक या व्यवहारिक सत्य भी आ जाते हैं। कुछ लोग अपने गलत कर्मों में भी कुछ गलत नहीं देखते हैं। नैतिकता समाज द्वारा थोपी गई है।
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