पुरुष और स्त्री, शिव शक्ति को नहीं दर्शाते हैं, बल्कि उलटा है। शिव शून्य है, शक्ति माया है, इन अवधारणाओं की कल्पना मनुष्य ने अपनी सीमित बुद्धि के अनुसार पुरुष और स्त्री के रूप में की है। इन दार्शनिक सिद्धांतों को रुचिकर बनाने के लिए और आम लोगों को समझाने के लिए इनको मानव रुप में दिखाया गया है। यह संकेतिक मात्र है।
शक्ति पुरुषों में भी है और शून्यता या शिव स्त्री में भी है। स्त्री पुरुष का भेद केवल जागृत अवस्था में ही होता है।
शिव को योगी के रूप में दिखाया गया है क्योंकि योगी या ज्ञानी अपना स्वरूप शून्यता के रूप में जानता है। वास्तव में परम शून्यता या शक्ति का कोई चित्रण नहीं किया जा सकता है।
शिव के मस्तिस्क पर चन्द्र, चेतन युक्त चित्त या चेतना को दर्शाता है। इसलिये शिव को चन्द्रशेखर भी कहा गया है। जिस योगी या ज्ञानी की चेतना जागृत हो गयी है वो चन्द्रशेखर, यानि शिव है।
मनुष्य में लिंग भेद और प्रकृति में अन्य भेद होने का कारण विकासक्रम है। जो गुण उत्तरजीविता के लिए आवश्यक हैं वो अपने आप विकसित और प्रकट होने लगते हैं।
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