मेरा कोई अनुभव नहीं होता है, सभी अनुभव अनुभवकर्ता को होते हैं। पहले अनुभव हो जाता है, उसके बाद विचार आता है कि यह मेरा अनुभव है। मैं केवल एक विचार मात्र है। स्मृतियों में भिन्नता है, स्मृति में सीमा है। यदि सभी स्मृतियां मिल जायें तो जीवन सम्भव नहीं है। स्मृति में सीमा भी काल्पनिक हैं। जागृत अवस्था में स्मृति में सीमा खींच दी गई है इसलिये अनुभव सीमित है, पर अनुभवकर्ता सीमित नहीं है। अनुभव के सीमित होने से अनुभवकर्ता सीमित नहीं होता है।
कंगन, कड़े आदि से सोना सीमित नहीं होता है। क्या सीमित है, नाम रुप या तत्व? तत्व की सीमा नहीं है, पर नाम रुप सीमित हैं। लहर सीमित है, पर लहर सागर को सीमित नहीं कर सकती है। चित्र परदे को सीमित नहीं कर सकता है, पर्दा हटा लिया जाये तो चित्र भी नहीं रहेगा। केवल विश्वस्मृति ही है, कारण शरीर भी उसीका एक भाग है।लहर लहर में भेद बहुत थोड़ी देर ही रहता है, केवल सागर है, या केवल पानी है। लहर केवल अज्ञान है। द्वैत भी अद्वैत में ही है, उससे भिन्न नहीं है। अनुभव और अनुभवकर्ता दोनों का तत्व शून्य है, शून्य यानि कुछ नहीं होना, शिव, निर्गुणता। आत्मज्ञान होने के बाद मन में अशांति नहीं होती है।
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