परमानंद सूक्ष्म आनंद होता है जिसमें आनंद की चिंता नहीं होती है। अभी भी आप परमानंद की स्थिति में हैं, केवल जानते नहीं हैं। जब इच्छा पूर्ति का दबाब नहीं होता है, तो आपके अंदर का आनंद प्रकट हो जाता है। आनंद खालीपन की अवस्था है। जिसकी वजह से आनंद छुप जाता है, यदि वह नहीं रहे तो आनंद है। सुख और दुःख दोनों अभाव हैं, और आनंद इन दोनों का अभाव है। आनंद महत्वपूर्ण हैं, माया का ज्ञान लेकर भी कुछ नहीं होता है।
यदि ज्ञान होने के बाद भी आनंद की अवस्था नहीं है तो कोई ना कोई बाधा है। आनंद तक पहुंचने के लिए बाधायें आती हैं, जब आनंद मिल गया है तो और क्या चाहिये। प्राणी पहले से ही मिथ्या है, उसका मुक्त होना या नहीं होना बराबर है।आत्मज्ञान से आनंद की स्थिति आ जाती है, ब्रह्मज्ञान से आनंद की भी परवाह नहीं रहेगी।
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