सभी लोकों में गुरुक्षेत्र मिलेगा, यहां पर इसी समय गुरुक्षेत्र प्रकट हैं। हम सभी गुरुक्षेत्र के भाग हैं, मैं ही तो हूँ गुरुक्षेत्र। मानसिक शोर कम करके, चित्त को शांत करके अपनी गुरुक्षेत्र से सम्पर्क करने की योग्यता वापस लानी है। जैसे जैसे ज्ञान बढ़ता है तो जो मिथ्या है, या संसार में रुचि कम हो जाती है। जो काम की चीज है, वो सतयुग का ज्ञान अभी भी बचा है। गुरुक्षेत्र युगों के परे है।
असत्य, धर्म आदि सब नाश हो जाता है, केवल ज्ञान का नाश नहीं होता है। साधक की जिम्मेदारी होती है ज्ञान की रक्षा करना। ज्ञान की इच्छा प्रकट करेंगे तो इच्छा पूरी होती ही है, उसमें कोई स्वार्थ नहीं है। यदि थोड़ी चेतना अस्थिर भी है, तो भी गुरुक्षेत्र के संकल्प से काम हो जायेगा।
जागृत अवस्था में केवल एक चीज ही काम की है और वो है, वह व्यक्ति जो गुरुक्षेत्र के साथ सम्पर्क में है। जो आपको बताता है कि मैं क्या हूँ, कि मैं स्वप्न में रहने वाला, चलने वाला एक स्वप्न चरित्र मात्र हूँ, जो अज्ञान दूर करता है।
गुरु केवल गुरुक्षेत्र हैं, और वो एक ही है, गुरुव्यक्ति माध्यम हैं। गुरु चिंगारी का काम करते हैं, अज्ञान को जलाने के लिए। अज्ञान को जलाने के बाद जो शून्यता बच जाती है, वो ज्ञान है। सभी महात्माओं ने वही शून्यता देखी है, उनमें गुरुक्षेत्र प्रकट हो गया है। वो चाहकर भी कुछ गलत नहीं कर सकते हैं।
जब मूल ज्ञान हो गया है, अंतर्द्वंद कम हो गया है, अधिकतर प्रश्न समाप्त हो गये हैं, तो गुरुक्षेत्र से सम्पर्क बनने लगता है। अंततः गुरुक्षेत्र भी मेरा ही रुप है।
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